सहारनपुर। राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना को 150 साल हो गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वंदे मातरम गीत को संपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए और इसके जो हिस्से पहले हटा दिए गए थे उन्हें भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए, लेकिन प्रधानमंत्री के ये शब्द देश के मुस्लिम जन प्रतिनिधियों और उलेमाओं को काफी नागवार गुजर रहे हैं. इस पर वह खुली आपत्ति भी जता रहे हैं.
पिछले दिनों कई जन प्रतिनिधि मोहम्मद आजम खान, शफीकुर रहमान वर्क और पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद भी संसद में इसके गायन पर अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं. अब एक बार फिर ये मामला सुर्खियों में आ गया है. पूर्व सांसद, दारुल उलूम की मजलिस-ए-शूरा के सदस्य और हाल ही में जमीयत उलमाए हिंद के एक धड़े के दोबारा अध्यक्ष चुने गए मौलाना महमूद मदनी ने यूनीवार्ता से बातचीत में मुसलमानों की आपत्ति पर दो टूक कहा कि वंदे मातरम गीत में कुछ पंक्तियां ऐसी हैं. जिसमें मातृभूमि को देवी दुर्गा के रूप में प्रस्तुत किया गया है तथा वन्दना एवं आराधना शब्दों का प्रयोग किया गया है।
मुसलमान इस विश्वास में विश्वास करते हैं कि ईश्वर एक है और उसकी पूजा करते हैं। इसलिए अन्य देवी-देवताओं की पूजा करना उनकी धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध है। मदनी ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 25 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है और अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। ऐसे में मुसलमानों को पूरा वंदे मातरम गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट भी अपना फैसला दे चुका है.
मौलाना महमूद मदनी ने बताया कि 26 अक्टूबर 1937 को गुरुदेव रवींद्र टैगोर ने पंडित जवाहर लाल नेहरू को लिखे पत्र में उनसे अनुरोध किया था कि वंदे मातरम गीत की पहली दो पंक्तियों को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया जाए. तीन दिन बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने टैगोर की सलाह को अपनी मंजूरी दे दी थी, तब से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पूरा गाना ही गाया जाए. इसे भागों में तोड़कर नहीं गाना चाहिए।



