पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का दूसरा चरण भले ही सियासी हलचल के लिए चर्चा में रहा हो, लेकिन इस बार के चुनाव प्रचार का सबसे खास पहलू रहा. बिहार की परंपरा, संस्कृति और लोक कला का अद्भुत प्रदर्शन।।
इस बार चुनावी मंच सिर्फ भाषणों का केंद्र नहीं रहे – वे बिहार की आत्मा, उसकी सांस्कृतिक विरासत और लोक कलाओं के प्रति सम्मान का प्रतीक बन गए।
प्रधानमंत्री को मिथिला का सम्मान- पाग, चादर, सूर्य प्रतिमा और सूप का उपहार
मिथिला की धरती पर प्रधानमंत्री का स्वागत पारंपरिक पाग, चादर और भगवान सूर्य की प्रतिमा से किया गया.
सूर्य की मूर्ति बिहार की आस्था का प्रतीक मानी जाती है.
स्थानीय सांसद शांभवी चौधरी पीएम को मिथिला पेंटिंग से सजा छठ पूजा का सूप यह भी प्रस्तुत किया- यह लोक कला और लोक आस्था का गौरवपूर्ण प्रतिनिधित्व था।
इसके अलावा प्रधानमंत्री मखाने की माला साथ ही पहना जाता है, जो मिथिला क्षेत्र की पहचान है.
जीकेपीडी कॉलेज, कर्पूरीग्राम के छात्रखर-पतवार-चकेवा‘लोकनृत्य प्रस्तुत कर उनका स्वागत किया, जिससे चुनावी मंच सांस्कृतिक उत्सव में तब्दील हो गया.
नेताओं में भी दिखती परंपरा की छाप!
बिहार की संस्कृति का आकर्षण सिर्फ प्रधानमंत्री तक ही सीमित नहीं रहा.
इस बार कई बड़े नेताओं ने मंच पर बिहार की कला और परंपरा को खुलकर अपनाया.
- स्मृति ईरानी बेनीपट्टी में रोड शो के दौरान मिथिला पेंटिंग वाला पाग और शॉल पहने हुए देखा।
- सांसद और अभिनेता रवि किशन खजौली की सभा में वे पाग-दुपट्टा और मखाना की माला पहने दिखे.
- अमित शाह, -राजनाथ सिंह समेत कई केंद्रीय नेता मिथिला पेंटिंग से सजा दुपट्टा और शॉल इसे पहना.
कई मंचों पर नेताओं को तोहफे के तौर पर मधुबनी पेंटिंग भी प्रस्तुत किया गया।
इससे बिहार की कला को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान मिली।
लोक कला कलाकारों में नई ऊर्जा, बढ़ी मांग
मधुबनी, सीतामढी और दरभंगा के कारीगरों ने बताया कि इस चुनावी मौसम में उनकी कलाकृतियों की मांग अचानक बढ़ गयी है.
मिथिला पेंटिंग, मखाना माला, पारंपरिक शॉल और लोक कला आधारित उपहारों के लिए पहले से कहीं अधिक ऑर्डर मिले।
कारीगर कहते हैं:
“इस बार नेताओं ने न केवल हमारी कला को प्रस्तुत किया, बल्कि उसका सम्मान भी किया।”
इससे स्थानीय कलाकारों को भी आर्थिक लाभ मिलेगा। आत्मसम्मान भी मिला.
चुनाव प्रचार में संस्कृति के रंग-लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करना
बिहार चुनाव 2025 ने संदेश दिया कि जब राजनीति परंपरा और संस्कृति से जुड़ती है तो लोकतांत्रिक माहौल और समृद्ध होता है।
चुनावी मंचों पर बिहार की लोक कला, पारंपरिक उपहार और पारंपरिक वेशभूषा की झलक ने यह साबित कर दिया बिहार की संस्कृति इतिहास ही नहीं वर्तमान की पहचान भी है.।।
इस बार के चुनाव ने यह साफ कर दिया कि बिहार की असली ताकत उसी में है कला, संस्कृति, लोक परंपरा और स्वाभिमान जो हर चुनाव में एक बार फिर जीवंत हो उठता है.
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