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इंदौर (मध्य प्रदेश), 10 नवंबर (भाषा) इंदौर के एक व्यक्ति ने राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की विरासत से जुड़ी विभिन्न दुर्लभ वस्तुओं को सहेजा है। इनमें देशभक्ति की लहर पैदा करने वाली इस धुन वाले ग्रामोफोन रिकॉर्ड और ‘वंदे मातरम’ के नारे वाले ऐतिहासिक बटन भी शामिल हैं.
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ ने इस साल 150 साल पूरे कर लिए हैं। इस मौके पर देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं.
दुर्लभ वस्तुओं के संग्रहकर्ता जफर अंसारी ने सोमवार को पीटीआई-भाषा को बताया कि उन्होंने पिछले तीन दशकों में विभिन्न स्थानों से ‘वंदे मातरम’ की विरासत से जुड़ी राष्ट्रीय महत्व की कई वस्तुएं एकत्र की हैं।
उन्होंने बताया, “इन चीजों में करीब 20 ग्रामोफोन रिकॉर्ड भी हैं। इन रिकॉर्ड्स में वंदे मातरम के बंगाली, हिंदी और मराठी वर्जन के गाने हैं, जिन्हें सुनने से देशभक्ति की भावना मजबूत होती है।”
अंसारी ने कहा कि उनके संग्रह में ‘वंदे मातरम’ बटन भी शामिल हैं जो स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा खादी जैकेट पर पहने जाते थे।
उन्होंने बताया, ”धातु से बने इन बटनों पर राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगे और चरखे के साथ हिंदी में वंदे मातरम उकेरा हुआ है. मैंने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर इन बटनों का एक-एक सेट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा है.”
अंसारी के मुताबिक, उनके पास 1937 में कागज पर छपे तिरंगे की प्रतिकृति भी है, जिसे 1907 में जर्मनी में एक कार्यक्रम में स्वतंत्रता सेनानी मैडम भीकाजी कामा ने फहराया था।
उन्होंने कहा, “मैडम भीकाजी कामा द्वारा विदेशी धरती पर तिरंगा फहराने की ऐतिहासिक घटना के 30 साल बाद पुणे की एक प्रिंटिंग प्रेस ने इस झंडे की प्रतिकृति कागज पर छापी थी. इस झंडे के बीच में हिंदी में वंदे मातरम लिखा हुआ है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस झंडे की प्रतिकृति लोगों के बीच बांटकर देशभक्ति और स्वतंत्रता की भावना जागृत की गई थी.”
ऐसा माना जाता है कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर, 1875 को अक्षय नवमी के अवसर पर ‘वंदे मातरम’ की रचना की थी। मातृभूमि की स्तुति में गाई जाने वाली इस धुन को 1950 में राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया।
‘वंदे मातरम्’ पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में चटर्जी के उपन्यास ‘आनंदमठ’ के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ था।
भाषा आनंद
मनीषा
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