जयप्रकाश गौड़ ने 1981 में जेपी ग्रुप की शुरुआत की और इसका विस्तार सीमेंट, बिजली, होटल और रियल एस्टेट तक किया। 2012 में, वह भारत के 70वें सबसे अमीर व्यक्ति थे, लेकिन अधूरी परियोजनाओं, गलत निवेश और बढ़ते कर्ज ने साम्राज्य को डुबो दिया। आज जेपी ग्रुप भारी घाटे के साथ दिवालियेपन की प्रक्रिया से गुजर रहा है।
प्रकाशित तिथि: सोम, 10 नवंबर 2025 02:54:25 अपराह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: सोम, 10 नवंबर 2025 02:54:25 अपराह्न (IST)
पर प्रकाश डाला गया
- जेपी ग्रुप की शुरुआत 1981 में इंजीनियर जयप्रकाश गौड़ ने की थी।
- 2006-12 में ₹60,000 करोड़ के निवेश से घाटा और कर्ज बढ़ा।
- 54,000 करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा यह समूह अब दिवालियापन की प्रक्रिया में है।
बिजनेस डेस्क. कभी भारत के शीर्ष बिजनेस टाइकून में शुमार किए जाने वाले जयप्रकाश गौड़ का जेपी ग्रुप आज कर्ज और घाटे के बोझ तले दबा हुआ है। 1981 में इंजीनियर की नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने इस समूह की नींव रखी। शुरुआत में तेजी से बढ़ते इस समूह ने सीमेंट, बिजली, रियल एस्टेट, होटल और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपना विस्तार किया। लेकिन एक बड़ी गलती ने इस पूरे साम्राज्य को डुबा दिया.
व्यापार कई क्षेत्रों में फैला
1981 में पहला होटल खुलने के बाद 1986 में सीमेंट, 1992 में बिजली और 2008 में यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण शुरू हुआ। नई परियोजनाओं ने जेपी समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और यह भारत के सबसे बड़े बुनियादी ढांचा समूहों में से एक बन गया।
रियल एस्टेट बन गया ‘डूबता जहाज’
21वीं सदी की शुरुआत में जेपी ग्रुप ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बड़े रियल एस्टेट प्रोजेक्ट लॉन्च किए। लेकिन कई परियोजनाएं अधूरी रह गईं. समूह को 2006 और 2012 के बीच किए गए लगभग ₹60,000 करोड़ के निवेश पर भारी घाटा हुआ। परियोजनाओं को पूरा करने में असमर्थता और बढ़ता कर्ज कंपनी के पतन का कारण बन गया।
बढ़ता कर्ज, बेची जा रही कंपनियां
समय के साथ घाटा बढ़ता गया. रियल एस्टेट बाजार में मंदी ने परेशानियां बढ़ा दी हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जयप्रकाश एसोसिएट्स पर अब 54,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है। इसे चुकाने के लिए कंपनी को अपने सीमेंट प्लांट, पावर प्रोजेक्ट और कई अन्य संपत्तियां बेचनी पड़ीं।
कभी फोर्ब्स की सूची में, आज दिवालियेपन की प्रक्रिया में
2012 में फोर्ब्स ने जय प्रकाश गौड़ को भारत का 70वां सबसे अमीर व्यक्ति बताया था। उस वक्त उनकी संपत्ति करीब 855 मिलियन डॉलर (करीब ₹7,582 करोड़) आंकी गई थी। आज वही समूह दिवालियापन की प्रक्रिया से गुजर रहा है और एक इंजीनियर का सपना भारी कर्ज के नीचे दब गया है.
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