लखनऊ. राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता प्रमोद तिवारी ने संसद के आगामी सत्र की अवधि में कटौती को लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय बताया है। प्रमोद तिवारी ने रविवार को कहा कि मोदी सरकार ने एक दिसंबर से शुरू होने वाले संसद सत्र की अवधि महज तीन सप्ताह तय कर महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा से बचने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है.
उन्होंने कहा कि संसदीय परंपरा के अनुसार, संसद सत्र छह सप्ताह तक चलता था, लेकिन हाल के वर्षों में इसे घटाकर चार सप्ताह कर दिया गया है. इस बार सरकार ने मात्र तीन सप्ताह का सत्र बुलाकर लोकतांत्रिक व्यवस्था की सीमाएं लांघ दी है।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 75 के मुताबिक प्रधानमंत्री और कैबिनेट संसद के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्री संसद की कार्यवाही में कम ही नजर आते हैं. यह न सिर्फ संसदीय परंपरा का उल्लंघन है बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत की भी अवहेलना है. कांग्रेस नेता ने कहा कि विपक्ष संसद सत्र में जनता के वोट देने के अधिकार की सुरक्षा को लेकर सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करेगा.
उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार एसआईआर, अमेरिकी टैरिफ, एच-1बी वीजा, मुद्रास्फीति और कमजोर विदेश नीति जैसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा से बचने के लिए सत्र की अवधि कम कर रही है। उन्होंने इसे लोकतंत्र के खिलाफ असंसदीय और अलोकतांत्रिक कदम बताते हुए कहा कि संसद में चर्चा और जवाबदेही लोकतंत्र की आत्मा है और मोदी सरकार इसे नजरअंदाज कर रही है.



