मधुपुर. मारगोमुंडा प्रखंड क्षेत्र के बाघशीला गांव में खेती को जैविक और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सामूहिक खेती का अनोखा प्रयास किया जा रहा है. यह प्रयास जैविक खेती को बढ़ाने के उद्देश्य से किसानों को बाजार एवं कर्ज मुक्त बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल है। बंजर एवं बंजर भूमि पर सामूहिक खेती आकार लेने लगी है। करीब 40 पारिवारिक किसानों ने सामूहिक पहल के तहत खेती की तस्वीर बदलने का संकल्प लिया है। इसे साकार करने के लिए ग्रामसभा के माध्यम से खेती की शुरुआत की गई है। पर्यावरणविद् घनश्याम की देखरेख में मांझी हड़ाम, मदन हेंब्रम, शिबू मुर्मू, चंदन, आनंद मरांडी, लिसेन मरांडी समेत दर्जनों युवा व महिलाएं सामूहिक खेती को आगे बढ़ाने में लगे हैं. किसान आनंद मरांडी कहते हैं कि यहां 120 एकड़ जमीन पर टिकाऊ एकीकृत खेती होगी. आसपास के तालाबों व बोरिंग से पानी की व्यवस्था की जा रही है. पशुपालन, मुर्गीपालन, मिट्टी की उर्वरता और कंपोस्टिंग के लिए अलग-अलग प्रयास किये जा रहे हैं। गांव के अधिकांश किसान परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। परिवार के लिए भोजन और पोषण के लिए संघर्ष कर रहा हूं। सामूहिक खेती के माध्यम से किसान आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं। उक्त जमीन पर खेल मैदान व बच्चों के लिए स्कूल खोलने की भी योजना बनायी जा रही है. सात रैयतों की 120 एकड़ भूमि में फलदार वृक्षों का रोपण, पपीता, नीबू अमरूद आदि छोटे फलदार पौधों का रोपण, मोटा अनाज मडुवा, कोदो, ज्वार, बाजरा के साथ गेंदा सहित अन्य फूलों की खेती, आलू, बैगन, टमाटर, मिर्च, ओल, प्याज, भिंडी, मूली, गाजर, कोहड़ा, कद्दू, करेला, झींगा, खीरा, फ्रेंच बीन्स के साथ दलहनी व तिलहनी फसलें। यहां सेम, मटर, अदरक, पालक आदि की खेती करने की योजना है। किसान यहां टेंट लगाकर सामूहिक रूप से खेती कर रहे हैं। किसान दिन-रात खेतों में मेहनत करके इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। यहां युवा किसानों का उत्साह देखते ही बन रहा है. फिलहाल 1500 किलो आलू का बीज लगाया गया है. पूरे खेत की जुताई का काम चल रहा है. किसानों का कहना है कि अगर सामूहिक खेती के लिए समुचित सिंचाई सुविधा और पूंजी मुहैया करायी जाये तो क्षेत्र से दर्जनों लोगों का पलायन रुक जायेगा. किसानों ने राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन से खेती के लिए समुचित सिंचाई की व्यवस्था करने की मांग की है. पर्यावरणविद् घनश्याम ने कहा कि बाघशीला गांव की सामूहिक खेती की पहल न सिर्फ झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए मिसाल बन सकती है.
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