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Thursday, November 6, 2025
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दूषित भावनाओं पर आधारित रिश्ते में महिला की सहमति स्वीकार्य नहीं, हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका खारिज की

प्रयागराज. शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाने वाले आरोपी की याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ऐसे हालात में महिला की ‘सहमति’ को कानूनी सहमति नहीं माना जा सकता, जहां वादा धोखे से पैदा हुआ हो। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की एकल पीठ ने दुष्कर्म के आरोपी को बर्खास्त करने की मांग वाली रवि पाल की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया।

कोर्ट ने कहा कि आरोपी द्वारा शुरुआत से ही गुमराह करने वाले वादे करके शारीरिक संबंध स्थापित करना भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दंडनीय है। मामले के मुताबिक, गोरखपुर की एक लड़की ने जनवरी 2024 में सहजनवां थाने में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 120-बी के तहत मामला दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने उसे शादी का वादा करके अपने घर और होटल में बुलाया और कई बार उसके साथ बलात्कार किया.

बाद में दिल्ली ले जाकर भी उसने उससे शादी करने से इंकार कर दिया और उसे छोड़कर भाग गया। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत पीड़िता द्वारा दर्ज किए गए बयानों को विश्वसनीय पाया और रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों को आरोपी के ‘दुर्भावनापूर्ण इरादे’ और पीड़िता की सहमति के दुरुपयोग का संकेत माना। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब किसी महिला से झूठा वादा करके संबंध स्थापित किया जाता है तो यह आईपीसी की धारा 375 के तहत ‘यौन शोषण’ की श्रेणी में आता है।

आरोपी ने अपने बचाव में दलील दी थी कि रिश्ता ‘सहमति’ से बना था और शादी का कोई ठोस वादा नहीं किया गया था. कोर्ट ने इस तर्क को अनुचित पाया और कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में तथ्यों की गहन जांच ट्रायल के दौरान ही संभव है. अंत में कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के समक्ष प्रथम दृष्टया सामग्री अभियोजन पक्ष के मामले की पुष्टि करती है। ऐसे में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कार्यवाही रद्द करने का सवाल ही नहीं उठता. इसके साथ ही कोर्ट ने अंतरिम रोक आदेश को भी रद्द कर दिया.

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