प्रयागराज, लोकजनता: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए महिला से पुरुष बने याचिकाकर्ता को मार्कशीट और सर्टिफिकेट में नाम और लिंग बदलने की इजाजत दे दी है। इसके साथ ही क्षेत्रीय सचिव, माध्यमिक शिक्षा परिषद, बरेली द्वारा नाम और लिंग परिवर्तन से इनकार करने का आदेश रद्द कर दिया गया है.
कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने वाला ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 एक विशेष कानून है, जिसका पालन अन्य सभी नियमों पर प्राथमिकता रखता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकल पीठ ने शरद रोशन सिंह की याचिका का निपटारा करते हुए पारित किया. दरअसल, शाहजहाँपुर निवासी याचिकाकर्ता एक सहायक अध्यापक हैं, जिन्होंने वर्ष 2020 में लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू की और 2023 में सर्जरी पूरी हुई।
इसके बाद उन्होंने सरकारी रिकॉर्ड में अपना नाम “सरिता” से “शरद” करने की मांग की। जिला मजिस्ट्रेट ने ट्रांसजेंडर प्रमाण पत्र जारी किया, फिर भी बोर्ड ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि देर से आवेदन करने पर बदलाव का कोई प्रावधान नहीं है। मामले पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि अधिनियम, 2019 और 2020 के नियम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शैक्षिक दस्तावेजों सहित सभी आधिकारिक कागजात में नाम, लिंग और फोटो बदलने का अधिकार देते हैं।
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के निर्णयों का हवाला देते हुए ऐसे मामलों में प्रशासनिक शिथिलता को संवैधानिक मूल्यों के विपरीत माना और कहा कि संवैधानिक गारंटी केवल कानून की किताबों में लिखे शब्द बनकर नहीं रह सकते, बल्कि उनका उचित पालन व्यक्तियों के जीवन में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होना चाहिए।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रति राज्य का निष्क्रिय रवैया और विधायी उदासीनता उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। संविधान के अनुसार समानता, गरिमा और भेदभाव से मुक्त जीवन का अधिकार सुनिश्चित करना राज्य की सक्रिय जिम्मेदारी है। अंत में, अदालत ने 8 अप्रैल, 2025 के आदेश को रद्द कर दिया और संबंधित अधिकारियों को आठ सप्ताह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को संशोधित मार्कशीट और प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया।
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