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Thursday, November 6, 2025
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जेब में लैब: पलक झपकते ही बीमारियों का निदान


अब बीमारियों की जांच के लिए पैथोलॉजी लैब में लाइन में लगने की जरूरत नहीं होगी और न ही रिपोर्ट के लिए अगले दिन का इंतजार करना होगा। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की पहल से यह बड़ा बदलाव संभव होगा। दरअसल, आईआईटी कानपुर ने एक अत्याधुनिक पोर्टेबल डायग्नोस्टिक डिवाइस विकसित किया है, जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी और स्वास्थ्य प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव साबित हो सकता है। यह छोटा सा उपकरण न केवल किसी भी व्यक्ति के रक्त, मूत्र, पसीना और लार के नमूनों से विभिन्न बीमारियों का परीक्षण कर सकता है, बल्कि मिट्टी और पेय पदार्थों में मौजूद प्रदूषण की पहचान कर तुरंत रिपोर्ट देने में भी सक्षम है। इन खूबियों के कारण माना जा रहा है कि आईआईटी कानपुर की यह खोज भारत को सस्ती, तेज और सटीक परीक्षण तकनीक के क्षेत्र में बड़ी पहचान दिला सकती है। ‘लैब इन पॉकेट’ जैसा यह उपकरण आने वाले समय में स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों क्षेत्रों में एक नया अध्याय लिख सकता है।

तीन हजार की डिवाइस और 20 रुपये की पेपर चिप

3,000 रुपये की कीमत वाली इस डिवाइस से किया जाने वाला टेस्ट भी काफी सस्ता है. परीक्षण के लिए कागज से बनी एक चिप का उपयोग किया जाता है, जिससे परीक्षण के परिणाम तुरंत मिल जाते हैं। परीक्षण प्रक्रिया को तुरंत पूरा करने से रक्त, मूत्र या लार के नमूनों के दूषित या खराब होने का कोई खतरा नहीं रहता है। इस डिवाइस को कोई भी डॉक्टर अपने क्लिनिक में रख सकता है. इसके लिए कागज पर कार्बन इलेक्ट्रोड चिप बनाई गई है, जिसकी कीमत 15 से 20 रुपये है।

मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड की जांच आसान

आईआईटी कानपुर की रिसर्च टीम के मुताबिक, यह डायग्नोस्टिक डिवाइस बायोसेंसिंग तकनीक पर आधारित है। यानी यह शरीर के तरल पदार्थों में मौजूद बायोमार्कर की पहचान करके बीमारी का पता लगाता है। इससे इसकी मदद से मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड जैसी संक्रामक बीमारियों के अलावा कई तरह के सूक्ष्म संक्रमणों और प्रदूषकों की पहचान भी आसानी से और जल्दी की जा सकती है।

रिचार्जेबल उपकरण सौर पैनलों से भी संचालित हो सकते हैं

इस डिवाइस का इंटरफ़ेस बहुत आसान है, इसके लिए किसी तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। केवल नमूने की एक बूंद डालने से, डिवाइस में सेंसर सक्रिय हो जाते हैं और कुछ ही मिनटों में परिणाम प्रदान करते हैं। खास बात यह है कि यह डिवाइस रिचार्जेबल है और बिजली न होने की स्थिति में भी इसे सोलर पैनल से चलाया जा सकता है।

केमिसिस्टम सेंसर के लिए पोर्टेबल रीडआउट यूनिट का नाम दिया गया

आईआईटी कानपुर के बायो साइंस और बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. संतोष कुमार मिश्रा के निर्देशन में शोध छात्र अनिमेष कुमार सोनी और नेहा यादव द्वारा तैयार इस डिवाइस को पोर्टेबल रीडआउट यूनिट फॉर केमीसिस्टम सेंसर नाम दिया गया है। इसके माध्यम से जैविक और रासायनिक दोनों अणुओं की जांच की जा सकती है। डिवाइस के लिए पेटेंट आवेदन को मंजूरी दे दी गई है। अनिमेष के अनुसार, पेपर चिप और डिवाइस सेंसर को विभिन्न रसायनों का पता लगाने के लिए विशेषीकृत किया गया है। प्रत्येक परीक्षण के लिए विभिन्न उपकरणों और चिप्स का उपयोग किया जाता है।

मुस्कान दीक्षित (46)

डिवाइस की सबसे बड़ी खासियत

डायग्नोस्टिक आईआईटी कानपुर द्वारा विकसित किया गया है

डिवाइस की सबसे बड़ी खासियत इसकी पोर्टेबिलिटी है। यानी यह एक ‘पॉकेट लैब’ की तरह है, जिसे किसी भी गांव, सुदूर इलाके या आपदा प्रभावित क्षेत्र में ले जाया जा सकता है और मौके पर ही परीक्षण किया जा सकता है। इस पोर्टेबल डिवाइस से कुछ ही मिनटों में जांच रिपोर्ट मोबाइल स्क्रीन पर उपलब्ध हो जाती है। ऐसे में माना जा रहा है कि यह उपकरण ग्रामीण स्वास्थ्य मिशनों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए वरदान साबित हो सकता है, जहां संसाधनों की कमी के कारण अक्सर बीमारी के निदान में देरी होती है, जिसका नुकसान मरीजों को उठाना पड़ता है।

ग्रामीण भारत के लिए ‘मौके पर चिकित्सा परीक्षण’

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, आईआईटी कानपुर द्वारा विकसित पोर्टेबल डायग्नोस्टिक डिवाइस तकनीक ग्रामीण भारत में बीमारी का पता लगाने की प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी, जहां पहले नमूनों को परीक्षण के लिए शहरों में भेजा जाता था, अब ‘मौके पर ही चिकित्सा परीक्षण’ संभव होगा। इतना ही नहीं, पर्यावरणविद भी इस इनोवेशन को लेकर काफी उत्साहित हैं, क्योंकि यह मिट्टी, पानी और खाद्य पदार्थों में प्रदूषण का विश्लेषण करने और उन्हें सुरक्षित रखने का एक सस्ता और तेज साधन बन सकता है।

टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का काम अंतिम चरण में

आईआईटी कानपुर के बायोसाइंस और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर संतोष कुमार मिश्रा ने कहा कि केमिसेंसरी सेंसर के लिए पोर्टेबल रीडआउट यूनिट के परीक्षण के परिणाम सटीक पाए गए हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा इसकी मदद से खेतों की मिट्टी और पेय पदार्थों में मौजूद रसायनों की भी पहचान की जा सकती है। इससे दूध और शीतल पेय की गुणवत्ता की जांच भी संभव है. इस डिवाइस को बाजार में लाने के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की दिशा में काम अंतिम चरण में है।

-मनोज त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार

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