बेशक, यह जीत सिर्फ ट्रॉफी की नहीं, बल्कि आधी आबादी के आत्मविश्वास की है। ये एक ऐसी जीत है जो 140 करोड़ भारतीयों के दिल में बसी उम्मीदों को पूरा करेगी. यह क्षण डायना एडुल्जी, शांता रंगास्वामी, अंजुम चोपड़ा, मिताली राज और झूलन गोस्वामी जैसे कई दिग्गजों के पसीने से तैयार की गई दशकों लंबी यात्रा की परिणति है। कभी अनुभव और संसाधनों की कमी से जूझने वाली टीम अब अनुशासन, तकनीक और मानसिक दृढ़ता के दम पर विश्व चैंपियन बन गई है।
भारतीय महिला क्रिकेट की इस ऐतिहासिक जीत ने दिखा दिया कि महिला क्रिकेट अब पुरुष क्रिकेट का पूरक नहीं रह गया है. विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ पिछली हार से भारतीय महिला क्रिकेट टीम टूटी नहीं, बल्कि और मजबूत हुई है. यह टीम अब पहले से कहीं अधिक संगठित है, फिटनेस और क्षेत्ररक्षण में उन्नत है और डेटा-आधारित रणनीतियों में माहिर है। इस बदलाव में कोच अमोल मजूमदार और बीसीसीआई सचिव जय शाह की भूमिका निर्णायक रही है. जहां जय शाह ने महिला आईपीएल की स्थापना करके आर्थिक स्थिरता और अवसरों का विस्तार किया, वहीं मजूमदार ने टीम रणनीति और मानसिक प्रशिक्षण को एक नए स्तर पर पहुंचाया। बीसीसीआई के प्रयासों ने छोटे शहरों से नई महिला क्रिकेट प्रतिभाओं को आगे लाने में योगदान दिया।
यह जीत न सिर्फ क्रिकेट के मैदान पर बल्कि सामाजिक बदलाव की पिच पर भी खेली गई विजयी पारी है. जब गांव की एक बेटी देखेगी कि भारतीय महिला टीम विश्व विजेता बन गई है, तो उसे भी विश्वास हो जाएगा कि खेल सिर्फ पुरुषों का क्षेत्र नहीं है। यह जीत महिला सशक्तिकरण के लिए एक ऐसी प्रभावी प्रेरणा है, जिसकी पहुंच किसी भी भाषण या योजना से कहीं अधिक गहरी है। यह सफलता क्रिकेट की दुनिया में ‘डिप्लोमैटिक सॉफ्ट पावर’ का भी प्रतीक है। भारतीय महिला क्रिकेट की यह उपलब्धि वैश्विक मंच पर भारत की खेल क्षमता, प्रबंधन और खेल संस्कृति का एक नया चेहरा प्रस्तुत करती है। बाज़ार भी इसे पहचान रहा है. विज्ञापनदाता अब महिला खिलाड़ियों को ब्रांड वैल्यू मानने लगे हैं।
महिला क्रिकेट के प्रसारण अधिकार और प्रायोजन मूल्य में भविष्य में उल्लेखनीय वृद्धि होना लगभग तय है। टीवी और इंटरनेट के माध्यम से दर्ज की गई भीड़, दर्शकों की संख्या के आंकड़े बताते हैं कि महिला क्रिकेट अब घरेलू बातचीत का हिस्सा बन गया है। दर्शक बढ़ेंगे तो निवेश भी बढ़ेगा और फिर वह दिन दूर नहीं जब महिला खिलाड़ियों को पुरुषों के बराबर पारिश्रमिक मिलेगा।
अब जिम्मेदारी सरकार और बीसीसीआई की है कि वह महिला क्रिकेट के लिए एक अलग राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र, राज्य स्तर पर अकादमियां और स्कूल स्तर से प्रतिभाओं की खोज के लिए एक संरचित लीग प्रणाली स्थापित करें। महिला खिलाड़ियों के लिए खेल विज्ञान, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और कैरियर सुरक्षा योजनाएँ भी बनाई जानी चाहिए। भारतीय महिला क्रिकेट की ये विश्व विजेता पारी सिर्फ खेल की जीत नहीं है, ये एक नए भारत का ऐलान है जहां लिंग नहीं प्रतिभा, सिर्फ जुनून मायने रखता है. ये जीत आने वाली पीढ़ियों को बताएगी कि जब महिलाएं मैदान में उतरती हैं तो ऐतिहासिक इतिहास लिखा जाता है.



