हिन्दू धर्म में स्वस्तिक को शुभता, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में यह पवित्र चिन्ह बनाना एक अनिवार्य परम्परा है। ऐसा माना जाता है कि अगर सही दिशा और विधि से स्वस्तिक बनाया जाए तो यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर जीवन में सकारात्मकता और सफलता लाता है।
प्रकाशित तिथि: मंगल, 04 नवंबर 2025 04:06:17 अपराह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: मंगल, 04 नवंबर 2025 04:06:17 अपराह्न (IST)
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- स्वास्तिक बनाते समय इन बातों का ध्यान रखें।
- किसी पवित्र प्रतीक का निर्माण एक अनिवार्य परंपरा है।
- इससे घर में धन-संपत्ति बनी रहेगी।
धर्म डेस्क. हिन्दू धर्म में स्वस्तिक को शुभता, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में यह पवित्र चिन्ह बनाना एक आवश्यक परम्परा है।
ऐसा माना जाता है कि अगर सही दिशा और विधि से स्वस्तिक बनाया जाए तो यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर जीवन में सकारात्मकता और सफलता लाता है।
स्वस्तिक का महत्व
स्वस्तिक शब्द का अर्थ है ‘सर्व मंगल’ – अर्थात हर प्रकार का शुभ। ऋग्वेद के अनुसार यह सूर्य का प्रतीक है, जिसकी चार भुजाएं चार दिशाओं और स्थिरता का प्रतिनिधित्व करती हैं।
धार्मिक दृष्टि से यह समृद्धि, खुशहाली और शुरुआत का प्रतीक है। स्वस्तिक चिन्ह बनाने से ऊर्जा, स्थिरता और कार्यसिद्धि की संभावना बढ़ती है।
कहां और कैसे बनाएं स्वास्तिक?
- स्वस्तिक बनाते समय पहले दायां भाग और फिर बायां भाग बनाना चाहिए।
- घर में अष्टधातु या तांबे से बना स्वास्तिक लगाना बहुत शुभ माना जाता है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में स्वस्तिक बनाने से सर्वोत्तम परिणाम मिलते हैं।
- मुख्य द्वार या पूजा स्थल पर स्वस्तिक चिन्ह लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और सुख-समृद्धि आती है।
इन गलतियों से बचें
- स्वस्तिक हमेशा स्नान के बाद साफ हाथों से बनाएं।
- स्वस्तिक कभी भी उल्टा या टेढ़ा नहीं बनाना चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है.
- स्वस्तिक बनाते समय बीच में रेखाओं को न काटें।
- स्वास्तिक बनाने के लिए चंदन, कुमकुम या सिन्दूर का प्रयोग करें।
- इसे बनाते समय मन में सकारात्मक भावनाएं और विश्वास रखें।



