आशीष शास्त्री/न्यूज़11भारत
सिमडेगा/डेस्क: शहर के प्रिंस चौक पूजा पंडाल में 2008 से हर साल पूरी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाने वाला छठ पूजा महोत्सव पूरे राज्य में अपने आप में एक अलग स्थान रखता है. इस महोत्सव की शुरुआत भी बेहद दिलचस्प रही और दो पत्रकारों की सोच और कल्पना को खाद-पानी देकर पूजा समिति ने इसे आज एक पारंपरिक महोत्सव के रूप में साकार कर दिया.
प्रिंस चौक में होने वाले इस छठ महोत्सव की प्रारंभिक नींव के बारे में जानने के लिए हमें आज से 17 साल पीछे जाना होगा. वर्ष 2008 में चैत्र माह की छठ पूजा के दौरान हिंदुस्तान अखबार के तत्कालीन ब्यूरो चीफ व शहर के जाने-माने पत्रकार सतीश सुमन मिश्र और महुआ चैनल के तत्कालीन ब्यूरो आशीष शास्त्री छठ पूजा की खबर कवर करने छठ घाट पर गये थे. आधी सुबह के बाद लोग घाट पर प्रसाद के लिए जद्दोजहद करते दिखे. कुछ लोगों के हाथ प्रसाद लगा तो कुछ निराश होकर रह गए। निराश होने वालों में छोटे गरीब बच्चे अधिक थे। उस दृश्य को देखने के बाद जब पत्रकार सतीश सुमन और आशीष शास्त्री ने इस पर चर्चा की तो उन्होंने भी कहा कि सभी को प्रसाद मिलना चाहिए. इसके बाद दोनों पत्रकारों ने पारंपरिक सूर्य उपासक सार्वभौम शाकद्वीपीय ब्राह्मण महासभा के पदाधिकारियों के साथ बैठक के दौरान इस संदर्भ में चर्चा की. इसके बाद उसी बैठक में सिमडेगा में मूर्ति स्थापित कर छठ मनाने का प्रस्ताव रखा गया. जिस पर महासभा ने सहमति जताई। बस फिर क्या था। ब्राह्मण महासभा के सहयोग से प्रिंस चौक दुर्गा पूजा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव प्रसाद और सचिव श्रीराम पुरी के साथ दोनों पत्रकारों ने प्रिंस चौक पूजा पंडाल परिसर में छठ पूजा के आयोजन की तैयारी शुरू कर दी.
इसके साथ ही हमें शहरवासियों का भी पूरा सहयोग मिला. चूंकि इस तरह की पूजा शहर में पहली बार हो रही थी. इसे लेकर लोगों में उत्सुकता थी. बंगाल के मूर्तिकारों ने ही सबसे पहले भगवान सूर्य की मूर्ति भी बनाई थी। ठेकेदार शफीक खान ने आधा हिस्सा देकर नि:शुल्क तालाब बनवाया। परिसर की साफ-सफाई एवं शुद्ध जल की व्यवस्था नगर पंचायत के तत्कालीन उपाध्यक्ष ओम प्रकाश अग्रवाल ने संभाली थी। सिमडेगा के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर जीएन सिंह ने छठ के लिए प्रचुर मात्रा में फलों की व्यवस्था की थी. राजीव प्रसाद और श्रीराम पुरी ने महाप्रसाद ठेकुआ के लिए पांच क्विंटल गेहूं की व्यवस्था की. प्रथम वर्ष में छह स्नातकों, कल्याण मिश्र की पत्नी, बड़े भाई सतीश सुमन की मां और पत्नी तथा आशीष शास्त्री की दादी ने यहां 21 जोड़ी जूते दान किये। इस पूजा में पूरी शुद्धता और पवित्रता के साथ पांच क्विंटल गेहूं के आटे से महाप्रसाद ठेकुआ बनाया गया. प्रसाद बनाने वाले कारीगर कारू ने भी व्रतियों की तरह व्रत का पालन करते हुए प्रसाद तैयार किया. छठ पूजा के पहले वर्ष में पत्रकार शंभु सिंह, प्रभात कुलकेरिया आदि का भी अहम योगदान रहा.
2008 में ही छठ पूजा की पूर्णाहुति के दिन केलाघाघ में सूर्य मंदिर की आधारशिला रखी गयी थी. जो आज एक भव्य मंदिर के रूप में खड़ा है। पहले वर्ष भगवान भुवन भास्कर की प्रतिमा का विसर्जन भी अनोखे ढंग से किया गया था. भगवान की सवारी के मार्ग को पानी से धोने के बाद उन्हें केलाघाट जलाशय में ले जाया गया और सूर्यास्त से पहले विसर्जित किया गया। ठेकुआ प्रसाद भी हर शहरवासी के हाथ तक पहुंच गया। इस साल प्रसाद के लिए किसी को निराशा नहीं हुई.
साल 2008 में शुरू हुई यह पूजा अब एक त्योहार का रूप लेकर एक परंपरा बन गई है. नव ज्योति नव युवक संघ प्रिंस चौक द्वारा 2009 से छठ महोत्सव मनाया जा रहा है। आज भी यहां प्रसाद पहले वर्ष की तरह ही शुद्धता के साथ बड़ी मात्रा में बनाया जाता है। अब छठ घाटों पर प्रसाद की मारामारी नहीं होगी. सबको पता है कि प्रिंस चौक पर प्रसाद जरूर मिलेगा. सभी के सहयोग से यह पूजा साल दर साल बढ़ती जा रही है। इस बार भी यह पर्व 25 अक्टूबर सोमवार से नहाय खाय के साथ शुरू होगा. 26 अक्टूबर को खरना, 27 अक्टूबर को शाम का अर्धदान और 28 अक्टूबर को सुबह का अर्धदान होगा। 29 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के साथ छठ महोत्सव का समापन होगा.
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