सुरेंद्र दुबे, जबलपुर। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की धन त्रयोदशी के कई कारण हैं। जैसे सृष्टि संरक्षण दिवस, धन तेरस – भगवान धन्वंतरि की अवतरण तिथि, राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस, जैन आगम के अनुसार आज ही के दिन भगवान महावीर समवशरण छोड़कर पावापुर के पद्मसरोवर में योग निरोध के लिए चले गये थे। इस दिन को धन्य तेरस या तेरस के रूप में मनाया जाता था। कार्तिक कृष्ण अमावस्या की प्रत्यूषा बेला में भगवान को निर्वाण प्राप्त हुआ। ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए महादेव ने विष पी लिया। माता लक्ष्मी और कुबेर को धन और धन्वंतरि जी को अमृत दिया।
भगवान विष्णु के अवतार भगवान धन्वंतरि ने विष को शांत करने के लिए महादेव को अमृत पिलाया। ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए भगवान शिव ने विष पिया और फिर भगवान ने उन्हें पीने के लिए अमृत दिया। दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी काशी को शिव ने अमृत पिलाकर अमर कर दिया था। यह विष्णु के अवतार धन्वंतरि का कार्य था, जो स्वयं समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे।
भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
सनातन धर्म में भगवान धन्वंतरि को महान चिकित्सक माना जाता है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। पृथ्वी लोक में उनका अवतार समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को माता काली और अमावस्या को माता लक्ष्मी जी सागर से अवतरित हुई थीं। इसीलिए दिवाली से दो दिन पहले भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
उन्होंने इसी दिन आयुर्वेद की शुरुआत भी की थी। उन्हें भगवान विष्णु का रूप कहा जाता है जिनकी चार भुजाएं हैं। ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और अमृत कलश है। जबकि अन्य दो भुजाओं में से एक में जड़ी-बूटियाँ हैं और दूसरे में आयुर्वेद ग्रंथ हैं। इनकी पसंदीदा धातु पीतल मानी जाती है। इसीलिए धनतेरस पर पीतल के बर्तन आदि खरीदने की परंपरा है। आयुर्वेद का अभ्यास करने वाले डॉक्टर उन्हें स्वास्थ्य का देवता कहते हैं। उन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।
सुश्रुत विश्व के प्रथम शल्यचिकित्सक
इतिहासकार डॉ. आनंद सिंह राणा ने बताया कि उनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने काशी में ‘सर्जरी’ का विश्व का पहला विश्वविद्यालय स्थापित किया और सुश्रुत को इसका संस्थापक बनाया गया। सुश्रुत दिवोदास के शिष्य और ऋषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत दुनिया के पहले सर्जन थे।
दिवाली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने विष पिया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी एक शाश्वत नगरी बन गई। आयुर्वेद के संबंध में सुश्रुत का मत है कि ब्रह्माजी ने पहली बार एक लाख श्लोकों का आयुर्वेद प्रकाशित किया था जिसमें एक हजार अध्याय थे। प्रजापति उनके पास पढ़ते थे, फिर अश्विनी कुमार उनके पास पढ़ते थे और इंद्र उनके पास पढ़ते थे।
चरक संहिता
धन्वंतरि ने इंद्रदेव से सुना और पढ़ा और फिर सुश्रुत को सुनाया। भावप्रकाश के अनुसार आत्रेय प्रमुख ऋषियों ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त कर अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों को दिया। विद्याथर्व सर्वस्वमायुर्वेदं प्रकाशयन्। स्वनाम्ना संहितां चक्रं लक्ष्यं श्लोकमयीमृजुम्। इसके बाद चरक द्वारा अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों के तंत्रों का संकलन कर ‘चरक संहिता’ की रचना भी उल्लेखनीय है।
धन्वंतरि को गरुड़ का शिष्य माना जाता है।
वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को दिया गया। जहां अश्विनी के हाथ में शहद का कलश था, वहीं धन्वंतरि के हाथ में अमृत कलश था, क्योंकि विष्णु जगत की रक्षा करते हैं, इसलिए रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि को विष्णु का अंश माना जाता था। जहर के विज्ञान के संबंध में कश्यप और तक्षक के बीच संवाद का उल्लेख महाभारत में धन्वंतरि और नागदेवी मनसा के बीच के संवाद के समान है जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में किया गया है। इन्हें गरुड़ का शिष्य कहा गया है।
सर्ववेदेषु निष्नातो मन्त्रतन्त्र विशारदः।
शिष्य हि वानतेयस्य शांकरोस्योपशिष्यः॥
भगवान धन्वंतरि की पूजा का एक संक्षिप्त मंत्र है – घं धन्वन्तराये नमःयह सबसे सरल एवं समझने योग्य मंत्र है।
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