दुनिया में प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर है. बढ़ता प्रदूषण न सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करता है बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है। वायु प्रदूषण के कारण दुनिया को हर साल 8.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। वायु प्रदूषण महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित हाशिए पर रहने वाले लोगों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। प्रदूषण के कारण विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में 6.1 प्रतिशत की कमी आती है। साथ ही हर साल 1.2 अरब कार्य दिवसों का नुकसान होता है। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत के हैं, जिनमें राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली दूसरे स्थान पर है। भारत में लगभग 70 प्रतिशत जलस्रोत प्रदूषित हैं।
देश में वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण पर नजर रखने के लिए 2018 में प्रदूषण नियंत्रण योजना शुरू की गई थी और सरकार इसके लिए पूरा फंड मुहैया करा रही है। सरकार की राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत अपनी जीडीपी का 5.4 फीसदी वायु प्रदूषण पर खर्च करता है, लेकिन केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिलने के कारण 2024-25 में प्रदूषण नियंत्रण के लिए 858 करोड़ रुपये के बजट का उपयोग नहीं किया जा सका। चूंकि चालू वित्तीय वर्ष खत्म होने को है, ऐसे में यह स्थिति प्रदूषण के प्रति लापरवाह रवैये और ठोस योजना की कमी की ओर इशारा करती है.
संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक आश्चर्य की बात है कि सरकार ने पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 858 करोड़ रुपये में से एक प्रतिशत भी खर्च नहीं किया. प्रदूषण नियंत्रण योजना के तहत, केंद्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और समितियों को वित्तीय सहायता और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के लिए धन प्रदान करता है, जिसका लक्ष्य 131 अत्यधिक प्रदूषित शहरों में प्रदूषण को 40 प्रतिशत तक कम करना है। दरअसल, भारत में प्रदूषण की गंभीर स्थिति पिछले कई सालों से वैश्विक सुर्खियों में बनी हुई है।
देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को देखते हुए प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम निरंतर जारी रहने चाहिए और अनुमति मिलने में देरी जैसी किसी भी प्रक्रियात्मक देरी की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। ऐसे में संसदीय समिति की रिपोर्ट चिंता का विषय है. सवाल उठता है कि ऐसी योजना के लिए समय रहते इजाजत क्यों नहीं ली जाती, खासकर तब जब देश के शहरों में प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच गया हो. कहा जा सकता है कि प्रदूषण की समस्या को देखते हुए आवंटित राशि का सही उपयोग करना बेहद जरूरी है. अगर इस स्थिति में सुधार नहीं किया गया तो प्रदूषण का स्तर और भी गंभीर हो सकता है.