छठ पूजा: पूरे बिहार में छठ पर्व की तैयारियां चरम पर हैं. प्रखंडों से लेकर पटना तक व्रती परिवार पूजा सामग्री जुटाने में लगे हैं. इस बीच देशी घी की कीमतों में अचानक हुई बढ़ोतरी ने गृहणियों की परेशानी बढ़ा दी है, वहीं सुधा डेयरी ने कीमतों को स्थिर रखकर राहत दी है. वहीं, पटना का खादी मॉल ‘लोक परंपरा और आधुनिकता’ का संगम बन गया है – जहां एक ही छत के नीचे सूप, दौरा, मिट्टी का चूल्हा, पूजा सामग्री और खादी साड़ियां उपलब्ध हैं.
ग्रामीण घी की कीमतों ने बढ़ाई परेशानी
छठ पर्व नजदीक आते ही घी की मांग ने बाजार का गणित बदल दिया है. इस बार स्थानीय बाजारों में देशी घी की कीमत 1400 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है. दुकानदारों का कहना है कि मांग बहुत ज्यादा है, जबकि दूध का उत्पादन सीमित है. इससे खेतों से लेकर शहरों तक कीमतें बढ़ गई हैं.
मगध दुग्ध उत्पादन संघ के अध्यक्ष जीतेंद्र कुमार यादव के मुताबिक, “सभी जिलों के केंद्रों पर सुधा का शुद्ध घी उचित मूल्य पर उपलब्ध है. व्रती परिवारों को कोई परेशानी न हो, इसके लिए हर प्रखंड मुख्यालय पर इम्प्रूवमेंट बूथ भी खोले गये हैं.”
इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में ‘देहाती घी’ की पारंपरिक मांग बनी हुई है. लोगों का मानना है कि घर का बना घी ही छठ प्रसाद का असली स्वाद है और यही वजह है कि कीमतें आसमान छू रही हैं.
खादी मॉल में छठ की खरीदारी का जश्न
इन दिनों पटना का खादी मॉल पारंपरिक सजावट और लोक धुनों से गूंज रहा है. यहां की हर चीज छठ की भावना से जुड़ी है- मिट्टी के चूल्हे, सूप, दउरा, डगरा, लहठी से लेकर खादी साड़ी तक।
यहां का विशेष आकर्षण ‘छठ-थीम वाली कलात्मक गुड़िया’ है, जो पारंपरिक पोशाक पहने हुए है – चुनरी, सिर पर सिन्दूर और हाथों में सूप लिए सूर्य देव को अर्घ्य देती हुई दिखाई देती है। इसकी कीमत करीब 1200 रुपये से शुरू होती है.
खादी बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी कार्तिकेय धनजी ने बताया,
हमने छठ व्रतियों के लिए पूरी तैयारी कर ली है. नहाय-खाय से लेकर खरना तक हर दिन खरीदारी का दौर जारी है.
मॉल में उपलब्ध अधिकांश वस्तुएँ स्थानीय कुम्हारों, बुनकरों और कारीगरों द्वारा बनाई गई हैं। मॉल मैनेजर रमेश चौधरी के मुताबिक, ‘हमारा मकसद सिर्फ उत्पाद बेचना नहीं बल्कि ग्रामीण उद्योगों को नया मंच मुहैया कराना है।’
पूजा सामग्री 20 रुपये से शुरू होकर आधा किलो सुधा घी 490 रुपये, बांस का सूप 45 से 60 रुपये, मिट्टी का चूल्हा 75 रुपये, दउरा व डगरा 96 रुपये से 200 रुपये में उपलब्ध है.
खादी साड़ियों पर 50 फीसदी तक की छूट दी गई है, जिनकी कीमत 599 रुपये से लेकर 6000 रुपये तक है. खादी का यह आंदोलन सिर्फ बिक्री नहीं है, बल्कि बिहार की आत्मा और कला का उत्सव है.
अर्थशास्त्र आस्था से उत्पन्न होता है
छठ सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, यह बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धड़कन है। हर साल इस त्योहार पर स्थानीय बाजारों में करोड़ों का लेन-देन होता है। खाद्य पदार्थों से लेकर, मिट्टी के उत्पाद, बांस उद्योग, वस्त्र निर्माण और परिवहन तक – हर क्षेत्र को इस एक त्योहार से जीवन मिलता है।
देसी घी की बढ़ती कीमतें चिंताएं जरूर बढ़ा रही हैं, लेकिन यह इस बात का भी संकेत है कि बिहार की पारंपरिक अर्थव्यवस्था आज भी अपने लोक त्योहारों के इर्द-गिर्द ही सांस लेती है.
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