भारतीय महिला क्रिकेट टीम द्वारा सात बार की विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराना महज एक मैच जीत नहीं है, बल्कि उसके क्षेत्र में एक युगांतकारी घटना है। कौशल और तकनीकी दृष्टि से कठिन यह मैच हार की हैट्रिक के बाद उतरी भारतीय टीम की मानसिक शक्ति और समन्वय की कड़ी परीक्षा थी। यह मैच फाइनल से भी अधिक चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि पिछले दस वर्षों में खेले गए अंतर्राष्ट्रीय मैचों में 75 प्रतिशत से अधिक जीत प्रतिशत बनाए रखने वाली ऑस्ट्रेलिया को हराना महिला क्रिकेट में लगभग ‘असंभव’ माना जाता है। हालाँकि, यह भारत ही है जिसने उन्हें पहले भी कई बार टक्कर दी है और विश्व कप के सेमीफाइनल में हराया है।
2022 कॉमनवेल्थ गेम्स के फाइनल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को आखिरी ओवर तक चुनौती दी, जबकि 2023 की द्विपक्षीय सीरीज में भारत ने उसे सुपर ओवर में हराकर इतिहास रच दिया. इस जीत से साफ पता चलता है कि भारतीय महिला क्रिकेट ने खुद को दुनिया की शीर्ष चार टीमों ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका की लीग में मजबूती से स्थापित कर लिया है। भारतीय टीम न केवल प्रतिस्पर्धी बल्कि विजयी मानसिकता वाली टीम भी बन गयी है। भारत ने पिछले पांच सालों में टी20 और वनडे दोनों फॉर्मेट में लगभग 63 फीसदी मैच जीते हैं. यह किसी भी उभरती हुई क्रिकेट शक्ति के लिए एक शानदार रिकॉर्ड है।
बल्लेबाजी में लगातार सुधार ही इसका सबसे बड़ा आधार है. उदाहरण के लिए, स्मृति मंधाना ने पिछले 24 महीनों में 42.7 की औसत से रन बनाए हैं और स्ट्राइक रेट 130 से ऊपर रखा है। हरमनप्रीत महिला क्रिकेट के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक हैं। जबकि जेमिमा ने शानदार शतक बनाया, शेफाली वर्मा और ऋचा घोष जैसी खिलाड़ियों की निरंतर आक्रामकता महिला क्रिकेट में दुर्लभ है। गेंदबाजी में भी भारत ने शानदार प्रगति की है. रेणुका सिंह ठाकुर, दीप्ति शर्मा ने इस क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, हालांकि, ‘डेथ ओवरों’ की गेंदबाजी और स्पिन विकल्पों में और अधिक गहराई जोड़ने की जरूरत है।
कई बार हमारे गेंदबाज़ों ने अपने कुंद आक्रमण के कारण शुरुआती सफलता गँवा दी है। मौजूदा समय में टीम की सबसे बड़ी चुनौती निचले क्रम की बल्लेबाजी और फील्डिंग है. निचले क्रम के बल्लेबाजों का प्रति खिलाड़ी औसत केवल 11.2 रन है, जो ऑस्ट्रेलिया के 17.6 और इंग्लैंड के 15.8 से काफी पीछे है। हमारा कैच ड्रॉप प्रतिशत लगभग 12 है। दुनिया की शीर्ष रैंक वाली टीमों में सबसे अधिक। इन दोनों क्षेत्रों में सुधार बेहद जरूरी है, लेकिन यहां यह टीम न केवल खेल तकनीकी में बल्कि मानसिक मजबूती में भी मजबूत हो गई है।
ये वही आत्मविश्वास है जिसने ऑस्ट्रेलिया जैसी अजेय टीम को किस्मत से नहीं बल्कि अपने खेल से हराया. इसे देखकर तो यही लगता है कि भारतीय महिला टीम क्रिकेट के स्वर्णिम युग की दहलीज पर है. यदि धैर्य और समन्वय के साथ बल्लेबाजी में निरंतरता, गेंदबाजी में धार और क्षेत्ररक्षण में सटीकता बरकरार रखी जाए तो निकट भविष्य में वह एक ऐसी टीम बन सकती है जिसे क्रिकेट के तीनों प्रारूपों- टेस्ट, वनडे और टी20 में हराना लगभग असंभव होगा।



