छत्तीसगढ़ 2025: भोजपुरी एक्ट्रेस अक्षरा सिंह ने जब पहली बार छठ का व्रत रखा तो ये कई मायनों में पारंपरिक सोच को चुनौती दे रहा था. क्योंकि, छठ केवल शादीशुदा महिलाएं ही मना सकती हैं। अक्षरा ने लोकजनता से अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि छठ सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव है जो रोम-रोम में बसता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि हम सिन्दूर नहीं लगाएंगे, हमारी शादी नहीं हुई है, लेकिन छठ मां के प्रति मेरी जो भी भावना है, हम रख सकते हैं. माथे पर सिन्दूर लगाना आस्था का पैमाना नहीं है. शुद्ध मन और विश्वास का सबसे बड़ा महत्व है।
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बचपन में छठ गीत पर हंसने पर मां करछुल से पिटाई करती थी.
अक्षरा बताती हैं कि उनकी दादी और मौसी उनके घर में छठ मनाती थीं, जिन्हें देखते हुए वह बड़ी हुईं. खुद व्रत शुरू करने के विचार पर उन्होंने कहा कि अगर लड़के छठ कर सकते हैं तो कुंवारी लड़कियां क्यों नहीं? हालांकि, छठ शुरू करने को लेकर मन में डर था. यह डर छठ पूजा की पवित्रता और उचित पालन को लेकर था. उन्होंने बचपन की एक घटना साझा की. वह कहती हैं कि करीब पांच साल की उम्र में उन्होंने शारदा सिन्हा के छठ गीत का मजाक उड़ाया था. जिसके बोल थे ‘चुगला करे चुगली बिलिया करे मियांउ…’। जिसके बाद उनकी मां ने उन्हें खूब डांटा और करछुल से पीटा। उनके लिए यह पूजा कितनी महत्वपूर्ण है और इसमें कोई गलती नहीं होनी चाहिए.
बिहार की बेटी होने के नाते उन्होंने दीघा घाट पर तर्पण किया.
लोगों ने उन्हें सलाह दी थी कि एक सेलिब्रिटी होने के नाते उन्हें पटना के घाटों पर जाने के बजाय अपने घर की छत पर या टब में छठ करना चाहिए, लेकिन अक्षरा ने इसे ‘नया रचा गया धोखा’ कहकर खारिज कर दिया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वह उसी परंपरा का पालन करना चाहती हैं जो उनकी दादी और परदादी के समय से चली आ रही है. उन्होंने कहा, हम सेलिब्रिटी नहीं बनना चाहते, हम बिहार की बेटियां बनकर छठ पूजा करना चाहते हैं. इसी भावना के साथ उन्होंने दीघा घाट पर जाकर अर्घ दिया और विधि-विधान से पूजा की.
व्रत के दौरान ऐसा महसूस हो रहा था मानो स्वयं छठ मैया आ गई हों और काम करा रही हों।
अक्षरा के लिए ये अनुभव चमत्कारी था. हालांकि तीन दिन तक बिना पानी पिए रहना नामुमकिन लगता है, लेकिन व्रत के दौरान उन्हें जरा सी भी थकान महसूस नहीं हुई. उन्हें लगा कि छठ मां घर आई हैं और वही कर रही हैं. मैंने भी अपनी बहन से पूछकर अपनी पूजा की तैयारी खुद ही की. विधि विधान से ठेकुआ और खरना का प्रसाद भी बनाया गया. अक्षरा सिंह ने इस व्रत को कम से कम तीन साल तक रखने का संकल्प लिया है. वह कहती हैं कि छठ पूजा हमारी पहचान है. इस भागदौड़ भरी जिंदगी में युवाओं को अपनी जड़ें और सभ्यता नहीं खोनी चाहिए और खुलकर अपनी आस्था का निर्वाह करना चाहिए।



