MP News: भगवान शिव के रूद्र रूप काल भैरव की जयंती 12 नवंबर, बुधवार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी. इस साल आश्लेषा और मघा नक्षत्र में भक्त काशी के कोतवाल की पूजा करेंगे और दाल, बाटी और चूरमा का भोग लगाएंगे. इस अवसर पर मंदिरों में विराजमान महादेव के रौद्र रूप को फूल बंगले में विराजमान किया जाएगा। साथ ही जुलूस भी निकाले जाएंगे।
प्रकाशित तिथि: शुक्र, 07 नवंबर 2025 07:27:40 अपराह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: शुक्र, 07 नवंबर 2025 07:27:39 अपराह्न (IST)
पर प्रकाश डाला गया
- कालभैरव जयंती 12 नवंबर को
- दाल-बाटी-चूरमे का भोग लगाया जाएगा
- भगवान की शोभा यात्राएं निकलेंगी
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। भगवान शिव के रूद्र रूप काल भैरव की जयंती 12 नवंबर बुधवार को शहर में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाएगी। इस साल आश्लेषा और मघा नक्षत्र में भक्त काशी के कोतवाल की पूजा करेंगे और दाल, बाटी और चूरमा का भोग लगाएंगे. इस अवसर पर शहर के मंदिर में विराजमान महादेव के रौद्र रूप को फूल बंगले में विराजित किया जाएगा। साथ ही जुलूस भी निकाले जाएंगे। त्योहार की खुशी के इस मौके पर जगह-जगह भंडारे होंगे।
पूजा का समय क्या है?
आचार्य शिवप्रसाद तिवारी ने बताया कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 11 नवंबर को रात 11.08 बजे से शुरू होगी और अगले दिन 12 नवंबर को रात 10.58 बजे तक रहेगी। 12 नवंबर को आश्लेषा और उसके बाद सुबह 6:35 बजे तक मघा नक्षत्र रहेगा। इसी तरह सुबह 8 बजकर 02 मिनट तक शुक्ल और ब्रह्म योग रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों योगों को शुभ माना गया है। यह योग आध्यात्मिक उन्नति और पवित्रता प्रदान करता है। निशा काल में काल भैरव की पूजा और दोपहर में जन्म आरती करने का महत्व है। इसलिए दोनों दिन मतभेद के साथ जयंती मनाई जाएगी।
काल भैरव को छप्पन भोग लगाया जाएगा
ज्योतिषाचार्य कान्हा जोशी के अनुसार तंत्र साधना के मूल साधक अलग-अलग प्रकार से भैरव की पूजा करते हैं। इसमें वैदिक और तामसी दोनों प्रकार की पूजा का उल्लेख है। भैरव :भैरव में मूलतः तमोगुण की प्रधानता है। इस दृष्टि से रात्रि के समय भैरव की पूजा विशेष फल देती है, लेकिन सामान्य भक्त चारों पहर में भगवान की पूजा कर सकते हैं। शनिवार को अष्टमी पर भैरव मंदिर खजराना में विभिन्न आयोजन होंगे। पुजारी गुलशन अग्रवाल ने बताया कि इस अवसर पर दोपहर में महाआरती होगी. इसके साथ ही आराध्या को फूल बंगले में विराजमान किया जाएगा और छप्पन भोग लगाया जाएगा. पंचकुइया स्थित काल भैरव मंदिर में विशेष सजावट होगी. पूरे दिन दर्शन-पूजन के लिए भक्तों की कतारें लगी रहेंगी।
पूजा-पाठ से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है
ज्योतिषाचार्य देवेन्द्र कुशवाह के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शिव के रौद्र रूप काल भैरव का जन्म हुआ था। काल भैरव की पूजा से सभी प्रकार की नकारात्मकता दूर हो जाती है। तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए काल भैरव की पूजा विशेष लाभकारी होती है। साधना से ग्रह दोषों से मुक्ति और अकाल मृत्यु का भय भी दूर हो जाता है।
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जयंती पर यहां कई कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे
श्री नंदभैरवबाबा समिति की ओर से नंदानगर मेन रोड स्थित नंदभैरव मंदिर के फूल बंगले में आराध्य के दर्शन होंगे। साथ ही प्रसाद भी वितरित किया जाएगा। बियाबानी चौराहा स्थित चैतन्य काल भैरव मंदिर में भगवान को छप्पन भोग लगाया जाएगा। इसके अलावा किला मैदान स्थित मंशापूर्ण काल भैरव धाम, ग्वाला भैरव मंदिर विजय नगर, काल भैरव मंदिर राजवाड़ा, काल भैरव मंदिर महूनाका, बटुक भैरव मंदिर छोटी ग्वालटोली में भी पूजा होगी।



