धर्म डेस्क. कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2025) के शुभ अवसर पर बुधवार को भागलपुर समेत राज्य भर में श्रद्धालु गंगा स्नान और दीपदान के लिए घाटों पर जुटेंगे. बरारी पुल, सीढ़ी घाट, हनुमान घाट, आदमपुर समेत विभिन्न गंगा तटों पर सुबह से ही श्रद्धालु पूजा-अर्चना और दीपदान करने लगेंगे. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से दस यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।
इस तिथि का सिख धर्म के लिए भी विशेष महत्व है क्योंकि इसी दिन गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। भक्त गुरुद्वारों में जाते हैं, कीर्तन सुनते हैं और सेवा का संकल्प लेते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा 2025 का शुभ मुहूर्त
तिलकामांझी महावीर मंदिर के पंडित आनंद झा के मुताबिक, पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर मंगलवार की रात 9:46 बजे से शुरू होगी और बुधवार, 5 नवंबर की शाम 7:28 बजे तक रहेगी. इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर सिद्धि योग और अश्विनी नक्षत्र का संयोग बन रहा है, जिससे इसका महत्व कई गुना बढ़ गया है.
क्यों खास है कार्तिक पूर्णिमा?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने एक महान त्योहार के रूप में प्रमाणित किया है। इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। ऐसा माना जाता है कि गंगा-गंडक संगम पर गज-ग्राह युद्ध के दौरान भगवान विष्णु ने गज की रक्षा की थी।
कार्तिक पूर्णिमा पूजा विधि
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें। घी या तिल के तेल का दीपक दान करें। घर में पीपल और तुलसी के पास दीपक जलाएं। मान्यता है कि दीपदान करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद, धन, यश और सौभाग्य मिलता है।
पंडित पवन झा के अनुसार इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और दान देने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
गंगा स्नान एवं दीपदान का माहात्म्य |
कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान और दीपदान का सबसे पवित्र दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और दीप दान करने से दस यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है।
इस साल कार्तिक पूर्णिमा पर शिवयोग और कृतिका नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
गुरुनानक जयंती पर्व भी आज
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। भक्त गुरुद्वारों में जाकर कीर्तन सुनते हैं, सेवा करते हैं और धर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं। शाम को श्रद्धालु अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों को भोजन कराते हैं। इस दिन को गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है. देव दिवाली का त्योहार मंदिरों और घाटों पर दीपक जलाकर मनाया जाता है।
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